Tera Chup Rehna Mere Zehan Me Kya Baith Gaya
Tera chup rehna mere zahen me kya baith gaya ..
Itni Awaze Tujhe Di Ki Gala Baith Gaya ..
Yu Nahi Hai Ki Faqat Main Hi Usse Chahyta Hu...
Jo Bhi Us Ped Ki Chav Me Gaya Baith Gaya...
Itna Meetha Tha Wo Gusse Bhare Lehja Mat Puch..
Us Ne Jis Ko Bhi Jaane Ko Kaha Baith Gaya...
Apna Ladna Bhi Mohabbat Hai Tujhe ilm Nahi...
Chikhti Tum Rahi Aur Mera Gala Baith Gaya...
Us Ki Marzi Wo Jise Paas Baitha Le Apne..
Us Pe Kya Ladna Ki Fala Meri Jagah Baith Gaya...
Baat Daryao Ki Suraj Ki Na Teri Hai Yaha...
Do Kadam Jo Bhi Mere Sath Chala Baith Gaya..
Baz-e-jana Me Nashiste Nahi Hoti Maqsus..
Jo Bhi Ek Baar Jaha Baith Gaya Baith Gaya....
( Tahzeeb Hafi )
तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गया ...
इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया....
यूँ नहीं है कि फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूँ....
जो भी उस पेड़ की छाँव में गया बैठ गया...
यूँ नहीं है कि फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूँ....
जो भी उस पेड़ की छाँव में गया बैठ गया...
इतना मीठा था वो ग़ुस्से भरा लहजा मत पूछ....
उस ने जिस को भी जाने का कहा बैठ गया....
उस की मर्ज़ी वो जिसे पास बिठा ले अपने...
इस पे क्या लड़ना फ़लाँ मेरी जगह बैठ गया...
अपना लड़ना भी मोहब्बत है तुम्हें इल्म नहीं
चीख़ती तुम रही और मेरा गला बैठ गया
बात दरियाओं की सूरज की न तेरी है यहाँ...
दो क़दम जो भी मिरे साथ चला बैठ गया....
बज़्म-ए-जानाँ में नशिस्तें नहीं होतीं मख़्सूस
जो भी इक बार जहाँ बैठ गया बैठ गया
उस ने जिस को भी जाने का कहा बैठ गया....
उस की मर्ज़ी वो जिसे पास बिठा ले अपने...
इस पे क्या लड़ना फ़लाँ मेरी जगह बैठ गया...
अपना लड़ना भी मोहब्बत है तुम्हें इल्म नहीं
चीख़ती तुम रही और मेरा गला बैठ गया
बात दरियाओं की सूरज की न तेरी है यहाँ...
दो क़दम जो भी मिरे साथ चला बैठ गया....
बज़्म-ए-जानाँ में नशिस्तें नहीं होतीं मख़्सूस
जो भी इक बार जहाँ बैठ गया बैठ गया
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